मूंगफली की फसल कितने दिन की होती है
क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों कुछ क्षेत्र प्रचुर मात्रा में मूंगफली की फसल के लिए जाने जाते हैं जबकि अन्य अच्छी उपज पैदा करने के लिए संघर्ष करते हैं? यदि हां, तो आप भाग्यशाली हैं क्योंकि हम मूंगफली उत्पादन बढ़ाने के रहस्यों की गहराई में जाने वाले हैं।
चाहे आप एक किसान हों और अपनी फसल को बढ़ावा देने के तरीकों की तलाश कर रहे हों या बस इस बारे में उत्सुक हों कि मूंगफली विभिन्न वातावरणों में कैसे पनपती है, यह लेख आपको आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करेगा। तो एक कलम और कागज ले लीजिए क्योंकि जब तक हमारा काम पूरा हो जाएगा, आप इस ज्ञान से लैस होंगे कि मूंगफली के लिए कौन सा उर्वरक सबसे अच्छा काम करता है और मूंगफली की खेती कहां सबसे ज्यादा होती है।
मूंगफली की फसल कितने दिन की होती है
मूंगफली की फसल की प्रमुख विकास चरण हैं:
- बुआई (Sowing): मूंगफली की बुआई के बाद, पौधों का उद्भावन 7 से 10 दिन में होता है।
- बुआई के बाद से पेड़ों की विकास अवस्था: मूंगफली के पौधे बुआई के बाद 40-50 दिन में फूलने और फिर फल देने लगते हैं।
- फल पकने में समय: मूंगफली के फलों का पकने में औसतन 100-130 दिन का समय लगता है, इसके बाद वे पूरी तरह से पके होते हैं और काट लिए जा सकते हैं।
इसके आधार पर, मूंगफली की फसल का पूरा चक्र बुआई से लेकर पानी की खुदाई तक लगभग 120 से 130 दिन का होता है।
मूंगफली की कटाई कब होती है
मूंगफली की कटाई का समय मुख्य रूप से मौसम और व्यवसायिक उद्देश्यों पर निर्भर करता है। भारत में मूंगफली की खेती दो मुख्य मौसम सीजनों में की जाती है, जैसे कि आपने उपर्युक्त उल्लिखित है:
- रबी सीजन: यह मूंगफली की बुआई अक्टूबर और नवंबर में की जाती है और मार्च और अप्रैल में कट ली जाती है। इस सीजन की फसल ठंडी और सर्दी में पूरी तरह से पूरी हो जाती है, और इसका प्रमुख उद्देश्य अपनाई गई फसल की उन्नतता और उपज की वृद्धि होती है।
- खरीफ सीजन: इस सीजन में मूंगफली की बुआई जून और जुलाई में की जाती है और नवंबर और दिसंबर में कट ली जाती है। यह सीजन गर्मियों में होता है और इसका प्रमुख उद्देश्य मूंगफली की अच्छी उपज की प्राप्ति होती है।
मूंगफली की कटाई का समय स्थानीय मौसम, जलवायु, और खेती के उद्देश्यों पर भी निर्भर कर सकता है।
मूंगफली की खेती किस महीने में होती है
मूंगफली की खेती का समय भारत में मुख्य रूप से खरीफ और रबी सीजनों में होता है, जो मौसम के अनुसार अलग-अलग महीनों में हो सकता है:
खरीफ सीजन: खरीफ सीजन में मूंगफली की खेती जून से शुरू होती है, जब मानसून आता है, और जुलाई के पहले हफ्ते तक बोई जाती है। इसके बाद यह फसल बढ़ती है और नवंबर-दिसंबर में काटी जाती है।
रबी सीजन: रबी सीजन में मूंगफली की खेती अक्टूबर और नवंबर में बोई जाती है और मार्च और अप्रैल में कट ली जाती है। यह सीजन ठंडी और सर्दी में होता है, और इसका प्रमुख उद्देश्य अपनाई गई फसल की उन्नतता और उपज की वृद्धि होती है।
यह खेती के समय के साथ-साथ स्थानीय मौसम और जलवायु की भी बदलती स्थितियों पर भी निर्भर करेगी, इसलिए स्थानीय खेती के अनुसार विचार करना महत्वपूर्ण हो सकता है।
मूंगफली की पैदावार कैसे बढ़ाए?
मूंगफली की पैदावार को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण उपाय हो सकते हैं:
- उचित बीज चुनाव: उचित प्रकार के मूंगफली के बीजों का चयन करें, जो उसके विशिष्ट भूमिगत और जलवायु परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हों।
- सही खेत प्रबंधन: अपने खेत की भूमि का अच्छी तरह से प्रबंधित करें, जैसे कि उचित खेतों की तैयारी, मिट्टी का आदर्श pH स्तर, और जल संचालन की सुविधा।
- समय पर बुआई: समय पर मूंगफली की बुआई करें, ताकि पौधों को अच्छी शुरुआत मिले।
- जल संचालन: मूंगफली की पौधों को जल संचालन की उचित सुविधा दें। समय पर और आवश्यकतानुसार पानी दें।
- उर्वरक प्रबंधन: उर्वरकों का सही समय पर और उचित रूप से प्रयोग करें।
- वायरस और कीट प्रबंधन: मूंगफली के पौधों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए उपयुक्त पैदावार प्रबंधन करें।
- प्रुनिंग और थिनिंग: पौधों को सही तरह से प्रून करें और उनकी दिशा में थिनिंग करें, ताकि प्लांट्स को पर्याप्त रूप से सूरज की रोशनी और हवा मिल सके।
- सही हवा और प्रकाशन: मूंगफली के पौधों को सही हवा और प्रकाशन के साथ उगाने का प्रयास करें।
- पोषण: पौधों को उपयुक्त मात्रा में पोषण प्रदान करें, ताकि उनकी उपज बढ़ सके।
- जल संचलन का प्रबंधन: जल संचलन की सख्त निगरानी करें और वायरसों के प्रसारण से बचाव के लिए सावधान रहें।
इन सभी मार्गों का पालन करके, आप मूंगफली की पैदावार को बढ़ा सकते हैं। ध्यानपूर्वक और सफल खेती के लिए स्थानीय बागवानी प्राथमिकताएँ और मौसम की पूरी जांच करना महत्वपूर्ण होता है।
मूंगफली की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है
मूंगफली की खेती भारत के विभिन्न राज्यों में की जाती है, लेकिन गुजरात, राजस्थान, और तमिलनाडु विशेष रूप से मूंगफली की खेती में प्रमुख हैं।
- गुजरात: गुजरात भारत का सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक राज्य है, जहां पांचवीं और छठी उत्पादकता भी है। गुजरात के अनंतपुर, जुनागढ़, बाणासकांठा, और अहमदाबाद जिलों में मूंगफली की खेती अधिक होती है।
- राजस्थान: राजस्थान भी मूंगफली की खेती के मामले में भारत में महत्वपूर्ण है, और यह दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक राज्य है। यहां के बीकानेर, बाड़मेर, और जोधपुर जिलों में मूंगफली की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु दक्षिण भारत में मूंगफली की उत्पादन में महत्वपूर्ण है, खासकर साल के खरीफ सीजन में। यहां के रामनाथपुरम, थूथुकुडी, और तिरुनेलवेली जिलों में मूंगफली की खेती की जाती है।
इन राज्यों के अलावा, मूंगफली की खेती के लिए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, अंड्र प्रदेश, और पंजाब जैसे राज्य भी महत्वपूर्ण हैं।
मूंगफली में कौन सा खाद डालें
मूंगफली की खेती में निम्नलिखित प्रकार की खादें डालना उपयुक्त होता है:
- नाइट्रोजन (Nitrogen): नाइट्रोजन मूंगफली के पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर पौधों के हरे भागों और पत्तियों के लिए। यह पौधों को अधिक फसल उत्पन्न करने में मदद करता है।
- फॉस्फोरस (Phosphorus): फॉस्फोरस मूंगफली के फूलों और फलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यह बीजों के उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।
- पोटैशियम (Potassium): पोटैशियम पौधों की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होता है, और यह फलों के विकास को भी सहायक बनाता है।
- मिश्रण खाद (Composite Fertilizers): आप मिश्रित खादें भी प्रयोग कर सकते हैं, जैसे की NPK खाद, जो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम का संयोजन होता है।
- जीवाणुगत खाद (Organic Fertilizers): आपके खेत की मृदा को जीवाणुगत खादों से भरपूर बनाने के लिए जैविक खादों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि कॉम्पोस्ट और गोबर कंपोस्ट। यह पौधों को पोषण प्रदान करता है और मृदा की स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
खाद की मात्रा और समय का सही चयन करने के लिए आपको अपने खेत की मिट्टी की जाँच करनी चाहिए और एक पेड़ोलॉजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि खाद की आवश्यकता भिन्न-भिन्न भूमि की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है।
मूंगफली की किस्में
भारत में मूंगफली कई प्रकार की किस्मों में पाई जाती है, और सभी किस्मों में अपनी खासियत होती है। फसल की उत्पादन की दृष्टि से, बीजों के प्रकार का चयन महत्वपूर्ण होता है।
- एके-12-24: इस किस्म की मूंगफली से लगभग 48% तेल प्राप्त किया जा सकता है, और इसकी पूर्ण विकासावधि 100-110 दिन की होती है। इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 500 किलोग्राम होता है।
- जे-11: जे-11 किस्म की मूंगफली में 49% तेल पाया जाता है, और यह एकड़ में लगभग 600 किलोग्राम का उत्पादन देती है। इसकी पूर्ण विकासावधि 100-110 दिन की होती है।
- ज्योति: ज्योति किस्म की मूंगफली जे-11 की तरह होती है, लेकिन इसमें तेल की मात्रा सबसे अधिक 53% होती है। इसकी पूर्ण विकासावधि 105-115 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 650 किलोग्राम होता है।
- कादरी-3: कादरी-3 किस्म की मूंगफली कम समय में तैयार होती है, जिसमें तेल की मात्रा 49% होती है। इसकी पूर्ण विकासावधि 100 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 800 किलोग्राम होता है।
- एम-13: इस किस्म की मूंगफली का उत्पाद भारत में सबसे ज्यादा होता है, और इसमें 49% तेल पाया जाता है। इसका पूर्ण विकासावधि 110-120 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 1100 किलोग्राम होता है।
- आईसीजीएस-11: आईसीजीएस-11 की किस्म गुच्छेदार होती है, जिसमें 48% तेल होता है। इसकी पूर्ण विकासावधि 100-110 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 800 किलोग्राम होता है।
- गंगापुरी: गंगापुरी किस्म की मूंगफली भी गुच्छेदार होती है, और इसमें 49% तेल होता है। इसकी पूर्ण विकासावधि 90-100 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 800 किलोग्राम होता है।
- आईसीजीएस-44: आईसीजीएस-44 की किस्म की मूंगफली के दाने मोटे होते हैं, और इसमें 49% तेल होता है। इसकी पूर्ण विकासावधि 100 दिन की होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 1000 किलोग्राम होता है।
- जेएल-24: जेएल-24 उत्पाद भी बहुत जल्दी पकता है, इसकी पूर्ण विकासावधि 90-100 दिन की होती है। इसमें तेल की मात्रा 50-51% होती है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 700-750 किलोग्राम होता है।
- टीजी-1 (विक्रम): टीजी-1 की किस्म सबसे लम्बी अवधि वाली है, जिसकी पूर्ण विकासावधि 120-130 दिन की होती है। इसमें 45-48% तेल होता है, और इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 800-1000 किलोग्राम होता है।
- आई.सी.जी.एस.-37: आई.सी.जी.एस.-37 की किस्म में 48-50% तेल होता है, और इसकी पूर्ण विकासावधि 105-110 दिन की होती है। इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 750-800 किलोग्राम होता है।
मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी होती है?
मूंगफली को उष्ण कटिबंध फसल भी कहा जाता है, लेकिन इसकी खेती समशीतोष्ण क्षेत्रों में की जाती है, जहां गर्मी की मौसम की अवधि अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक होती है।
मूंगफली के उन्नत विकास के लिए अधिक वर्षा, अधिक गर्मी या अधिक ठंड उपयोगी नहीं होते हैं। मूंगफली के बुआई के समय, उसके लिए लघुतम 14 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान और फसल की वृद्धि के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
इसके फसल में 30-60 सेमी की सिचाई को अच्छा माना जाता है। सही तापमान और सिचाई के साथ, मूंगफली की खेती के लिए बालू, बालू दोमट, दोमट और काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं।
- खेत की तैयारी / खेत की पूर्वस्थिति: किसी भी फसल को उगाने से पहले, खेत को उचित रूप से तैयार करना बेहद महत्वपूर्ण है। खेत को अच्छी तरह से जोत दें और बुरी तरह से खुदाई करें। जितनी अधिक जमीन खुदाई होगी, उतना अधिक मूंगफली का पैदावार होगा। इसलिए, पैदावार को बढ़ाने के लिए, खेत में 5-7 बार की जोताई करें।
- खेत की मिट्टी: मिट्टी की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है। मूंगफली की खेती के लिए, बालू, बालू दोमट, दोमट, और काली मिट्टी उपयुक्त होती हैं।
- बुआई का समय: किसी भी फसल की बुआई का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है। मूंगफली की बुआई को सही समय पर किया जाना चाहिए, जो आमतौर पर मॉनसून के प्रारंभ (15 जून से 15 जुलाई) में होता है। इससे फसल की अच्छी वृद्धि होती है।
- बीज की बोई: बीज को लगाने से पहले ध्यान देने वाली कुछ बातें होती हैं। सही वर्ग, मोटाई, और स्वस्थता की बीज का चयन करें। बुआई से पहले, बीज के छिलकों को हटा दें और बीज को बुआई के लिए तैयार करें। बुआई के दौरान बीजों को खेत में सही गहराई में और निर्धारित दूरी पर बोएं।
- बुआई के विधि: बुआई के लिए कई विभिन्न विधियां होती हैं, लेकिन भारत में इसमें कुछ प्रमुख तरीके होते हैं:
- हल के पीछे बोई: इस तरीके में, खेत को हल से गहराई में खोदा जाता है और फिर बीजों को बोआ जाता है।
- डिब्बलर विधि: इस तरीके में, खेत के सतह पर बीज लगाने के लिए एक विशेष डिब्बलर का उपयोग किया जाता है।
- सीड प्लांटर विधि: इस तरीके में, खेत के बीच दी जाने वाली दूरियों के साथ सीड प्लांटर का उपयोग किया जाता है, जो खेत में बीज लगाने की दृश्यता को बढ़ाता है और समय की बचत करता है।
मूंगफली में लगने वाले किट
सभी प्रकार की फसलों में, मूंगफली में भी कीटों का प्रकोप हो सकता है। इसमें कई प्रकार के कीटे और पतंगे हो सकते हैं। चलिए, हम मूंगफली में पाए जाने वाले कीटों के बारे में जानते हैं, ताकि हम सही समय पर मूंगफली के पौधों को बचा सकें और एक अच्छी फसल प्राप्त कर सकें:
- बिहार रोमिल सुंडी: यह एक मध्यम आकार की कीट होती है, जिसके पंखों पर काले धब्बे होते हैं और इसकी एक सुंडी होती है जो नारंगी रंग की होती है। ये पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह को खाते हैं, जिससे पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है।
- तम्बाकू की सुंडी: यह कीट भी मध्यम आकार की होती है और इसका रंग हरा-काला होता है। यह कीट अधिकांश फैलों को प्रभावित करती है।
- सफेद सुंडी: ये कीट आमतौर पर जमीं के नीचे पाई जाती है, और खासकर जुलाई और अगस्त महीनों में सक्रिय रहती है। यह कीट पौधों के जड़ों को खाती है, जिससे पौधे मर जाते हैं.
- दीमक: मूंगफली की खेती के लिए सबसे खतरनाक कीट दीमक होती है, यह अक्सर पौधों की जड़ों और फलों को प्रभावित करती है।
- रोग / सामान्य बीमारियां: बीमारियाँ न केवल मानवों में होती हैं, बल्कि ये हमारी फसलों में भी पाई जाती हैं। पौधों को कीटों के बाद बीमारियों से भी कई समस्याएं हो सकती हैं।
- एन्थ्रेक्नोज
- कोलर रोट
- गेरुई
- जड़ बिगलन
- टिक्का रोग
- चारकोल सडन.
रोग और कीटों का नियंत्रण
यदि बीजों का उपचार करके भी कीटों या बीमारियों के लक्षण दिखाई देते हैं, तो आप इसका इलाज करने के लिए 25 किलो नीम के पत्तों को 50 लीटर पानी में उबालें।
जब पानी आधा हो जाए, तो इसे किसी छलने में छान लें और सुरक्षित रखें। अब 200 लीटर पानी में 5 लीटर नीम के पानी और 10 लीटर गौ मूत्र का मिश्रण तैयार करें और इसे खेतों में छिड़काव करें। इस छिड़काव को कीटों के खत्म हो जाने या बीमारियों के खत्म हो जाने तक करें।
कटाई और गोदी
सामान्यत: जब पौधों के पत्तियों का रंग पीला होने लगे और पत्तियां गिरने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि मूंगफली पूरी तरह से पक गई है।
अब इसे काट लें और फलियों को पौधों से अलग कर लें। इन अलग की गई फलियों को धूप में सुखाना चाहिए, जब तक उनमें मानी की मात्रा 10% नहीं रह जाती। जब फलियां सूख जाएं, तो इन्हें सुरक्षित रखें।
Conclusion Points
मूंगफली की फसल आम तौर पर विविधता और बढ़ती परिस्थितियों के आधार पर लगभग 120 से 160 दिनों तक चलती है। मूंगफली की कटाई आमतौर पर गर्मियों के अंत में या शुरुआती शरद ऋतु में की जाती है, जब पौधे परिपक्व हो जाते हैं और फलियाँ पूरी तरह से विकसित हो जाती हैं। मूंगफली की खेती आमतौर पर मई या जून में की जाती है, क्योंकि इससे फसल से पहले लंबे समय तक बढ़ने का मौसम मिलता है।
मूंगफली का उत्पादन बढ़ाने के लिए, किसान विभिन्न तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं जैसे उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करना, उचित फसल चक्र अपनाना, प्रभावी कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना और इष्टतम सिंचाई और उर्वरक प्रदान करना। मूंगफली की खेती गर्म जलवायु और अच्छी जल निकासी वाली रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक बड़े पैमाने पर की जाती है, जैसे उप-सहारा अफ्रीका, भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के कुछ हिस्से।
फॉस्फोरस और पोटेशियम के उच्च स्तर के साथ संतुलित उर्वरक का उपयोग स्वस्थ जड़ विकास को बढ़ावा देने और मूंगफली की समग्र उपज में सुधार करने में मदद कर सकता है। इन दिशानिर्देशों का पालन करके और सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों को अपनाकर, किसान अपने मूंगफली उत्पादन को अधिकतम कर सकते हैं और अधिक टिकाऊ खाद्य आपूर्ति प्रणाली में योगदान कर सकते हैं।
Krishi Online वेबसाइट पर आप खेती-बाड़ी व पशुपालन और सरकारी वेबसाइट पर किसानों के लिए योजनाएं से संबंधित अन्य आर्टिकल को पढ़ सकते हैं. इसके अलावा मैंने दूसरे वेबसाइटों का भी लिंक (Reference) नीचे दिया है. उम्मीद करता हूं कि मैं आपका एक विश्वासी लेखक बन सकूंगा.
References
FAQs
1. मूंगफली की फसल कितने दिनों तक चलती है?
मूंगफली की फसल आम तौर पर विविधता और बढ़ती परिस्थितियों के आधार पर लगभग 120 से 150 दिनों तक चलती है।
2. मूंगफली की कटाई कब की जाती है?
मूंगफली की कटाई आमतौर पर देर से गर्मियों या शुरुआती शरद ऋतु में की जाती है, जब पौधे परिपक्वता तक पहुंच जाते हैं और फलियां पूरी तरह से विकसित हो जाती हैं।
3. मूंगफली की खेती किस माह में की जाती है?
मूंगफली की खेती आमतौर पर अप्रैल से जून तक की जाती है, क्योंकि यह अवधि अंकुरण और विकास के लिए इष्टतम तापमान और मिट्टी की स्थिति प्रदान करती है।
4. मूंगफली का उत्पादन कैसे बढ़ाएं?
मूंगफली का उत्पादन बढ़ाने के लिए, अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन करना, उचित सिंचाई और जल निकासी सुनिश्चित करना, उर्वरक के माध्यम से पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान करना, कीटों और बीमारियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना और अच्छी खरपतवार प्रबंधन तकनीकों का अभ्यास करना महत्वपूर्ण है।
5. मूंगफली की खेती के कुछ सामान्य विकल्प क्या हैं?
मूंगफली की खेती के कुछ सामान्य विकल्पों में सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, बादाम, काजू और हेज़लनट्स शामिल हैं। ये फसलें समान जलवायु परिस्थितियों में उगाई जा सकती हैं और तुलनीय लाभ प्रदान कर सकती हैं।
6. मूंगफली की खेती में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
मूंगफली की खेती में प्रमुख चुनौतियों में रोग की संवेदनशीलता (जैसे कि फंगल संक्रमण), कीट कीट (जैसे एफिड्स या थ्रिप्स), अप्रत्याशित मौसम पैटर्न (परिणामस्वरूप सूखा या अत्यधिक वर्षा), कीमतों को प्रभावित करने वाले बाजार में उतार-चढ़ाव और श्रम-गहन कटाई प्रथाएं शामिल हैं।
7. क्या मूंगफली विभिन्न क्षेत्रों/जलवायु में उगाई जा सकती है?
हाँ, मूंगफली अलग-अलग जलवायु वाले विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। हालाँकि, वे अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी वाली गर्म जलवायु में सबसे अच्छी तरह पनपते हैं।
8. क्या मूंगफली के लिए कोई विशिष्ट भंडारण आवश्यकताएँ हैं?
हां, मूंगफली को खराब होने या फफूंदी लगने से बचाने के लिए उन्हें ठंडी और सूखी स्थिति में संग्रहित किया जाना चाहिए। इन्हें 60°F (15°C) से कम तापमान और 50% से कम आर्द्रता के स्तर पर संग्रहित करने की अनुशंसा की जाती है।